The Hindu संपादकीय विश्लेषण
4th December 2023

टिप्पणी
  • भाजपा की हर चुनावी जीत के लिए लोकप्रिय कल्याणकारी योजना या बेहतर संगठनात्मक तंत्र को जिम्मेदार ठहराना एक मिथक है-कर्नाटक चुनावों में ऐसा क्यों नहीं हु।। !!
  • भाजपा के प्रभुत्व के पीछे दो प्रमुख कारक:-
  • पहला, एक प्रमुख वैचारिक एजेंडा, जिसका प्रतिनिधित्व हिंदू राष्ट्रवाद के व्यापक रूप में किया जाता है।
  • सुपर-चार्ज चुनावी अभियानों के माध्यम से एक विश्वसनीय और करिश्माई राष्ट्रीय नेतृत्व (मुख्य रूप से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी)।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक समावेशी अवसर और रोजगार की आवश्यकता है क्योंकि अधिकांश विकलांग/दिव्यांग व्यक्ति यहीं रहते हैं।
  • विश्व स्तर पर, 1.3 अरब लोग (जो भारत की लगभग पूरी आबादी के बराबर है) किसी न किसी रूप में विकलांगता के साथ जी रहे हैं। उनमें से 80% विकासशील देशों में रहते हैं; इसके अलावा, उनमें से 70% ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।
  • वर्तमान प्रणालियाँ विकलांग व्यक्तियों के लिए डिज़ाइन नहीं की गई हैं और अंततः विकलांग लोग बहिष्कृत हो जाते हैं , जिसके परिणामस्वरूप उन्हें गरीबी, शिक्षा और अवसरों तक पहुंच की कमी, अनौपचारिकता और सामाजिक और आर्थिक भेदभाव के अन्य रूपों का सामना करना पड़ता है।
  • समावेशन का मामला - अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अध्ययन के अनुसार, विकलांग व्यक्तियों को अर्थव्यवस्था में शामिल करने से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद को 3% से 7% के बीच बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी चुनौतियाँ- पहला कदम सरकार द्वारा जागरूकता है, जो सामुदायिक नेताओं की क्षमता निर्माण से शुरू होती है जो जमीनी स्तर पर इसको प्रोत्साहन दे सकते हैं।
  • निजी क्षेत्र विकलांग व्यक्तियों के रोजगार को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।
  • स्पार्क परियोजना (स्पार्किंग डिसेबिलिटी इनक्लूसिव रूरल ट्रांसफॉर्मेशन (स्पार्क) प्रोजेक्ट) - आईएलओ और इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (आईएफएडी), महाराष्ट्र में महिला विकास निगम के सहयोग से। इस परियोजना के माध्यम से गांव में विकलांग व्यक्तियों को चुना जायेगा जो विकलांगता समावेशन सुविधाकर्ता (डीआईएफ) के रूप में प्रशिक्षित किये जायेंगे और फिर अपने समकक्षों के बीच ये चेतना और ज्ञान कि जागृती लाएंगे।
  • निष्कर्ष: ग्रामीण क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों को शामिल किए बिना सामाजिक न्याय का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता है।