L & D फंड, तीन दशक पुरानी मांग, जलवायु न्याय की एक मौलिक अभिव्यक्ति है। L & D फंड धन और प्रौद्योगिकियों का एक कोष है जिसे विकसित देशों द्वारा भरा जाएगा और बाकी देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन के अपरिहार्य प्रभावों का जवाब देने के लिए उपयोग किया जाएगा।
इसकी मेजबानी चार साल की अंतरिम अवधि के लिए विश्व बैंक द्वारा की जाएगी और इसकी देखरेख एक स्वतंत्र सचिवालय द्वारा की जाएगी।
कुछ देशों ने फंड के लिए राशि देने का वादा किया है - जापान द्वारा $10 मिलियन से लेकर जर्मनी और संयुक्त अरब अमीरात द्वारा $100 मिलियन तक - क्या उन्हें समय-समय पर भरा जाएगा, यह स्पष्ट नहीं है। प्रतिबद्ध राशियाँ भी अपर्याप्त हैं।
विकसित देश जलवायु वित्त में 100 अरब डॉलर जुटाने के अपने वादे के मुताबिक 2020 की समय सीमा से चूक गए और 2021 में केवल 89.6 अरब डॉलर देने में कामयाब रहे।
म्यांमार की स्प्रिंग रिवोल्यूशन, एक लोकतंत्र समर्थक अभियान, (2021 में चुनावों के बाद सैन्य जुंटा द्वारा आंग सान की सत्ता पर कब्ज़ा करने के बाद शुरू हुआ, उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था।) म्यांमार की सेना/सैन्य जुंटा/ के खिलाफ तेज हो गया है, लेकिन कई विकास हुए हैं जिसे हमें भारतवासियों को ध्यान में रखना चाहिए।
NUG / National Unity Government का गठन और "म्यांमार की वसंत क्रांति" का विकास । NUG (एक लोकतंत्र समर्थक गठबंधन) की संरचना को भारतीयों को सिर्फ NLD के नेतृत्व वाली एक संस्था (आंग सान की) के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। . यह अधिक व्यापक और बड़ा है।
भारत- हालांकि भारत ने लोकतांत्रिक सुधारों का समर्थन किया है पर साथ-साथ इसने सावधानी से जुंटा के साथ संबंध बनाए हैं, क्योंकि यह म्यांमार में चीन के प्रभाव का मुकाबला करते रहना चाहता है।
भारत-मिजोरम के सीमावर्ती राज्यों में शरणार्थियों का मुद्दा
जी-20 समूह में, भारत की प्रति व्यक्ति सिविल सेवकों की संख्या सबसे कम है।
भारत में कुल रोज़गार में सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी (5.77%) इंडोनेशिया और चीन के मुकाबले आधी है, और यूनाइटेड किंगडम में लगभग एक तिहाई है।
लगभग 1,600 प्रति मिलियन के साथ, भारत में केंद्रीय सरकारी कर्मियों की संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका में 7,500 की तुलना में बहुत कम है।
इसी प्रकार, विकास के समान चरण वाले देशों की तुलना में भी डॉक्टरों, शिक्षकों, नगर नियोजकों, पुलिस, न्यायाधीशों, अग्निशामकों, खाद्य और औषधि निरीक्षकों और नियामकों की प्रति व्यक्ति संख्या सबसे कम है।
राज्य की भूमिका पर बहस - समावेशी विकास के समर्थक राज्य के लिए एक बड़ी भूमिका की वकालत करते हैं - स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा पर सार्वजनिक खर्च में वृद्धि और इसके साथ जाने के लिए एक बड़ी आधिकारिक भूमिका। दूसरी ओर, उनके आलोचक छोटे राज्य के पक्ष में बहस करने के लिए असंख्य नीतिगत विफलताओं का हवाला देते हैं।
हकीकत- जनहित के लिए संकीर्ण परन्तु प्रक्रिया/नियम-कानून के लिए जटिल देश है भारत। समस्याएँ -
विभागों के भीतर नीति निर्माण और कार्यान्वयन शक्तियों का अत्यधिक संकेंद्रण है।
शीर्ष नीति निर्मातााओं के पास तेजी से जटिल होती अर्थव्यवस्था को संचालित करने के लिए तकनीकी कौशल की कमी हैं। (पर्याप्त क्षमता के अभाव में केंद्र और राज्य कंसल्टेंसी फर्मों को नियुक्त करते हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, केंद्र सरकार ने पांच बड़ी कंसल्टेंसी फर्मों को महत्वपूर्ण कार्यों को आउटसोर्स करने के लिए पिछले पांच वर्षों में ₹500 करोड़ से अधिक का भुगतान किया है।)
इसी तरह, बाजार पर नजर रखने वाली संस्था SEBI और RBI के पास पेशेवर कर्मचारियों की ताकत बढ़ाने की जरूरत है। पहले में लगभग 800 पेशेवर हैं, जबकि यू.एस. में इसके समकक्ष, यू.एस. सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन के पास कॉरपोरेट्स को संचालित करने के लिए 4,500 से अधिक विशेषज्ञ हैं।
अंत में यह तो सार्वभौमिकता है कि किसी भी मुद्दे को संबोधित करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।
सरकारी सेवाओं में भ्रष्टाचार और नौकरी की सुरक्षा - इसका समाधान भविष्य के वेतन आयोग द्वारा मध्यम वेतन वृद्धि और सरकारी नौकरियों के लिए ऊपरी आयु सीमा में कमी है।